जहां लोग 45-50 साल से रह रहे हैं, रेलवे ने उस ज़मीन को अपना बताया

हल्द्वानी

उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी में 50 हज़ार आबादी घर छिनने की कोशिशों के बीच ख़ौफ़ में है. जहां लोग 45-50 साल से रह रहे हैं, रेलवे ने उस ज़मीन को अपना बताया है. उत्तराखंड हाईकोर्ट का फ़ैसला भी आ चुका है. 4365 घर तोड़े जाने हैं. उससे पहले नगर निगम ने इन बस्तियों के मलिन बस्ती होने का दर्जा भी ख़त्म कर दिया है. घरों को तोड़ने के लिए नोटिस जारी कर दिए गए हैं. अख़बारों में विज्ञापन के बाद एक सप्ताह का वक़्त देकर मुनादी पिटवाई जा रही है. आज रेलवे के अफ़सर भी ज़मीन के मौक़ा मुआयना को पहुंचे थे.



घर बचाने के लिए हज़ारों की भीड़ सड़कों पर धरना दिया जा रहा है. दुआएं मांगी जा रही हैं. 90 फ़ीसद घर मुस्लिम आबादी के हैं. 10 फ़ीसद ग़ैर मुस्लिम भी कार्रवाई की ज़द में हैं. कई स्कूल, 9 मस्जिद, 2 मंदिर और अस्पताल भी बुल्डोज़र की ज़द में हैं. तमाम तरह के इल्ज़ाम भी लग रहे हैं. हल्द्वानी सीट कांग्रेस के पास है, जबकि ज़िले की शेष सीट पर भाजपा का क़ब्ज़ा है. चुनाव के दौरान एक बड़े नेता की जनसभा के बाद से बड़ी आबादी के घरों पर संकट के बादल मंडराने की बातें भी आंदोलन के दौरान उछल रही हैं.



क्या कहता है कानून?

एडवोकेट चेतन पारीक के अनुसार, ‘वैसे तो कभी भी किसी भी ‘किराएदार’ का मकान मालिक की संपत्ति पर हक नहीं होता है. लेकिन कुछ परिस्थितियों में किराए पर रहने वाला व्यक्ति उस पर अपना जाहिर कर सकता है. लेकिन, ‘ट्रांसफर ऑफ प्रोपर्टी एक्ट के अनुसार, एडवर्स पजेशन में ऐसा नहीं होता है और इसमें जिस पर संपत्ति का कब्जा होता है, वो उसे बेचने का अधिकारी भी होता है. यानी अगर कोई 12 साल तक किसी संपत्ति पर एडवर्स पजेशन रखता है तो उसे संपत्ति पर अधिकार मिल जाता है.’



उदाहरण के तौर पर समझे तो जैसे किसी व्यक्ति ने अपने जानकार को अपनी प्रोपर्टी रहने के लिए दे रखी है और वो वहां 11 साल से ज्यादा साल रह रहा है तो वो उस संपत्ति पर अधिकार जमा कर सकता है. इसके उलट अगर कोई किराएदार है और मकान मालिक समय-समय पर रेंट एग्रीमेंट बनवा रहा है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी. इस स्थिति में कोई भी व्यक्ति उनकी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकता.



क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था, जिसमें कहा गया था लिमिटेशन ऐक्ट 1963 के तहत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन (परिसीमन) की वैधानिक अवधि 12 साल जबकि सरकारी अचल संपत्ति के मामले में 30 वर्ष है. यह मियाद कब्जे के दिन से शुरू होती है. बता दें कि कानून उस व्यक्ति के साथ है जिसने अचल संपत्ति पर 12 वर्षों से अधिक से कब्जा कर रखा है. अगर 12 वर्ष बाद उसे वहां से हटाया गया तो उसके पास संपत्ति पर दोबारा अधिकार पाने के लिए कानून की शरण में जाने का अधिकार है.

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