17 रमजान जंगे बदर की तारीख है ईस्लाम की पहले जंगे थी जिसमे मुसलमान को अजीम फतह हासिल हुई इस मे 313 सहाबा ने शिरकत की थी.

17 रमजान जंगे बदर की तारीख है ईस्लाम की पहले जंगे थी जिसमे मुसलमान को अजीम फतह हासिल हुई इस मे 313 सहाबा ने शिरकत की थी.

इस्लाम और इस्लाम के दुश्मनों के बीच 17 रमजान को हुई जंग मुसलमानों की सबसे बड़ी जंग थीं। हिजरी दो में ये जंग लड़ी गई,जिसमें मुसलमानों की तादाद 313 और दुश्मनों की 1000 थीं। इस जंग में मुसलमान निहत्थे ही गए थे,जबकि दुश्मनों के पास चमकती तलवारें थीं। मुसलमानों से निहत्थे जाने का कारण पूछा गया तो दो मुसलमानों ने कहा कि तलवार,तीर,बम,भाले क्या है,ये हम नहीं जानते। हमारे नबी ने हमें इस्लाम के लिए चलने को कहा तो हम चले आए। नबी ने कहा नमाज पढ़ो,रोजा रखो,अल्लाह एक है तो हमने मान लिया। ‘न तेगा तीर पे तकिया न बल्लम पे न भाले पे,हमारा नाज जो कुछ है वो एक सादे से काली कमली वाले पे’। इस्लाम और दुश्मन आमने सामने थे। 

जंगे बद्र ही वो जंग है,जिसमें अल्लाह के मुकद्दस रसूल सलल्लाहो रिसलल्लम ने एक डंडा लेकर लकीर खींच गोल दायरा बनाया और फरमाया कि अबू जेहल यहां मारा जाएगा। कुछ दूरी पर दूसरा दायरा खींचा और फरमाया कि उमय्या यहां मारा जाएगा। तीसरा दायरा खींचकर फरमाया सयबा यहां मारा जाएगा। चौथी लकीर खींच कर फरमाया कुतबा यहां मारा जाएगा। हमेशा यह होता है कि जंग पहले होती है और हालात और तरीके बाद में बताए जाते हैं। यह पहला मौका था,जिसमें जंग बाद में हुई और मरने वालों की खबर पहले दे दी गई। इसी दौरान महाज और मोअव्वीस नाम के दो बच्चे आए। एक दस और दूसरा 12 साल का था। दोनों बच्चों ने हजरते अब्दुर्रमान बिनओफ से अबू जेहल के बारे में जानकारी ली। दोनों हाथ में छोटी तलवारें लिए भीड़ में घुसते चले गए। वे अबू जेहल तक पहुंचे और ऐसा मारा कि वह जमीन पर गिर तड़पने लगा। वह अपने साथियों से पूछने लगा कि क्या यह वही जगह है,जहां मोहम्मद ने लकीर खिंची है। उसके साथियों ने ‘हां’ कहा तो वह छटपटाते हुए दायरे से बाहर निकलने लगा,लेकिन नहीं निकल पाया। साथियों से कहने लगा कि मोहम्मद की भविष्यवाणी को झूठी साबित करना है,मुझे इस दायरे से बाहर निकालो। साथी उसे उठाने के लिए झुके ही थे कि अबू जेहल ने दम तोड़ दिया।

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