नही रहे शिवान के शेर शहाबुद्दीन पीड़ित, मजलूम लोगो को इंसाफ दिलाने के लिए घर पर लगाते थे जनता दरबार ,शहाबुद्दीन साहब 2 बार विधायक और 4 बार लोकसभा चुनाव जीते थे,

बिहार

असदुद्दीन ओवैसी 2004 में पहली बार लोकसभा पहुंचे तो 31 जुलाई 2006 को बीजेपी नेता ने "जंगली जानवर" लफ्ज़ इस्तेमाल करते हुए भाषण दिया,औवैसी बोलने के लिए उठे और बीजेपी नेता के भाषण का जवाब उसी की भाषा मे दिया तो बीजेपी के क़ई सांसद आस्तीनों को चढ़ा औवैसी की तरफ़ बढ़ने लगे,बीजेपी सांसदों को औवैसी की तरफ़ बढ़ता देख सीवान से तीसरी बार लोकसभा सांसद चुने गये डॉ मोहम्मद शहाबुद्दीन संसद में खड़े हुए तो बीजेपी के सांसदों को वापस अपनी कुर्सी की तरफ़ भागना पड़ा और चुपचाप जाकर अपनी जगह पर बैठ गये,औवैसी ने अपने चुनावी रैलियों के दौरान जनता को शहाबुद्दीन का ज़िक़्र करते हुए "सीवान का शेर" लफ्ज़ इस्तेमाल किया।

डॉ मोहम्मद शहाबुद्दीन अपने घर में जनता दरबार लगाते थे जिसमें हर पीड़ित को न्याय और साथ मिलता था,कोई अपना घर,ज़मीन दबंगो द्वारा कब्ज़ाने को लेकर शिकायत लेकर आता तो कोई महिला ससुराल वालों से परेशानी की शिकायत लेकर आती,यहां तक कि तलाक़ के मामले में शहाबुद्दीन के दरबार में आने लगे,दबंगो से अपनी जमीन को मुक्त करवाने के लिए शिकायत का निवारण यू होता कि अगले ही दबंग जमीन या घर को खाली कर चले जाते थे,क़ई बार तो ऐसा हुआ कि जो पीड़ित शिकायतें लेकर पुलिस स्टेशन जाते थे पुलिस भी कह देती थी कि अपनी समस्या के लिए शहाबुद्दीन साहब के दरबार मे जाये जल्द हल निकलेगा।

2015 में बिहार में राजद ने अपना समर्थन देते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया तो पत्रकार रंजन के मर्डर केस में 2006 से जेल में सज़ा काट रहे शहाबुद्दीन को 2016 में पटना हाइकोर्ट से जमानत मिली और 1300 गाड़ियों के काफ़िले के साथ जेल से घर तक का सफ़र तय किया,जेल से रिहा होने के बाद शहाबुद्दीन ने बयान दिया कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के मुख्यमंत्री है वह मेरे नेता नही हो सकते मेरा नेता तो सिर्फ़ लालू प्रसाद यादव है,शाहबुद्दीन के इस बयान पर बिहार में मुख्यमंत्री खेमे में हलचल मच गई और नीतीश कुमार को नेता ना मानने के बयान से ख़फ़ा होकर बिहार सरकार शहाबुद्दीन को मिली हुई ज़मानत को ख़ारिज कर वापस जेल भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट गई जहां सरकार को सफलता भी मिली,सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की जमानत पर रोक लगाते हुए जेल भेजने का हुक्म दे दिया,लालू प्रसाद यादव को अपना नेता मानना और।नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री रहते हुए भी ठुकरा देना शहाबुद्दीन को फिऱ se जेल ले गया।

शाहबुद्दीन ने मीडिया को साक्षात्कार देते हुए कहा था कि मैं अल्लाह का शुक्र अदा करता हूँ कि एक एक रिकॉर्ड मेरे नाम रहा है कि मैं कभी भी चुनाव नही हारा,मैं ये कहकर जाऊँगा कि मैं जब भी हारूँगा सांसे हारूँगा,और आज ये ही हुआ कि डॉ मोहम्मद शहाबुद्दीन अपनी सांसे हार इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गये,शहाबुद्दीन साहब 2 बार विधायक और 4 बार लोकसभा चुनाव जीते,विधायक बनने के लिए उम्र 25 वर्ष होना आवश्यक है लेकिन शहाबुद्दीन ऐसे नेता थे जो मात्र 23 वर्ष की उम्र में 1990 में पहली बार विधायक चुने गये और 4 बार लोकसभा सांसद बने और साल 2009 ने चुनाव आयोग ने डॉ मोहम्मद शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर बैन लगा दिया तो उनकी पत्नी हिना शहाब चुनावी मैदान में उतरी लेकिन वह चुनावी मैदान में हार गई।

बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई,

इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया।।

शाम ढले हर पंछी को घर जाना पड़ता है,

कौन ख़ुशी से मरता है मर ही जाना पड़ता है।।

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