हिमांशु कुमार के लिए मत बोलिए लेकिन अपने आदिवासियों के लिए तो बोलिए

छत्तीसगढ़

हिमांशु कुमार ने बताया कि 16 आदिवासियों को सरकारी पुलिस और सुरक्षाबलों ने तलवारों से काटा था और गोलियों से छलनी कर दिया था

मारे गए लोगों में ज्यादातर बुजुर्ग और महिलाएं थी जिसमें एक डेढ़ साल के बच्चे की उंगलियां भी काट दी गई थी

इस देश में कितने ही आदिवासी संगठन है कितने ही आदिवासी पढ़े लिखे नौजवान हैं कितने ही आदिवासी आईएएस आईपीएस वकील प्रोफेसर एमपी एमएलए और अब भारत की राष्ट्रपति खुद आदिवासी है

लेकिन कोई इस घटना पर न कोई क्रोधित है ना दुखी है ना बोल रहा है

सब चुप है देख रहे हैं 14 जुलाई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना पर दायर की गई याचिका को फर्जी कहकर ठुकरा दिया है और याचिकाकर्ता संख्या एक हिमांशु कुमार पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है

हिमांशु कुमार के लिए मत बोलिए लेकिन अपने आदिवासियों के लिए तो बोलिए

अगर आदिवासियों के ऊपर हुए इतने बड़े अत्याचार पर भारत का पूरा आदिवासी समाज चुप रहता है तो इसका क्या संदेश जाएगा  ?

क्या इससे आदिवासियों का दमन करने उनके संसाधनों पर कब्जा करने लूटने वाली क्रूर शक्तियों को आप इसके बाद अपना दमन करने की खुली छूट नहीं दे रहे ?

किसानों ने एक साल लंबे संघर्ष के बाद सरकार को घुटनो के बल झुकने के लिए मजबूर कर दिया या,इस देश में 8% आदिवासी हैं

यानी भारत की आबादी में करीब 11 करोड आदिवासी हैं

11 करोड़ आदिवासियों में से कोई भी इस भयानक घटना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के भयानक अन्याय के खिलाफ क्यों नहीं बोल रहा है ?

बोलिए मेहरबानी करके अपने ऊपर होने वाले जुल्मों के खिलाफ बोलिए

कल यह आदिवासी दिल्ली पहुंच जाएंगे यह लोग 6 दिन दिल्ली में रुकेंगे

दिल्ली में मौजूद आदिवासी छात्र छात्राएं कर्मचारी पत्रकार वकील गोमपाड़ से आए इन पीड़ित आदिवासियों के पक्ष में दिल्ली में एक दिन धरना प्रदर्शन कर अपना विरोध नहीं जतला सकते क्या ?

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